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रायपुर प्रेस क्लब चुनाव पुराने और वरिष्ठ पत्रकारों को किया गया किनारे, नई सदस्यता से बदला समीकरण

 

रायपुर प्रेस क्लब चुनाव पुराने और वरिष्ठ पत्रकारों को किया गया किनारे, नई सदस्यता से बदला समीकरण

रायपुर प्रेस क्लब चुनाव पुराने और वरिष्ठ पत्रकारों को किया गया किनारे, नई सदस्यता से बदला समीकरण


रायपुर। राजधानी रायपुर में प्रेस क्लब का चुनाव इस बार बेहद दिलचस्प और विवादास्पद मोड़ पर पहुंच गया है। फार्म एवं रजिस्टार सोसायटी ने प्रेस क्लब को 60 दिनों के भीतर चुनाव कराने का स्पष्ट निर्देश दिया था, लेकिन मौजूदा कार्यकारिणी ने आदेशों को नजरअंदाज करते हुए नई सदस्यता जोड़कर पूरे चुनावी समीकरण को बदल डाला है।

पुराने सदस्य हटे, नए जुड़े

हाल ही में जारी मतदाता सूची में पिछले चुनाव के 787 सदस्यों में से 125 सदस्यों के नाम हटा दिए गए हैं। वहीं, 353 नए सदस्यों को शामिल कर नई मतदाता सूची जारी कर दी गई है। अब कुल मिलाकर 1015 सदस्य चुनाव में मतदाता होंगे। इन नए सदस्यों से 1000 रुपये शुल्क जमा करने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है।

पंजीयन सोसायटी के आदेश की अनदेखी

16 सितंबर को पंजीयन विभाग ने अपने आदेश क्रमांक 1269 में प्रेस क्लब के संविधान संशोधन को त्रुटिपूर्ण मानते हुए खारिज कर दिया था और स्पष्ट निर्देश दिए थे कि चुनाव पुरानी सदस्यता सूची के आधार पर ही कराए जाएं। इसके बावजूद मौजूदा अध्यक्ष प्रफुल्ल ठाकुर और उनकी कार्यकारिणी ने नए सदस्यों को जोड़कर अपने पक्ष में वोट बैंक तैयार करने की कोशिश की है।

नए सदस्य किन क्षेत्रों से?

नई सूची में केवल पत्रकार ही नहीं, बल्कि मासिक पत्रिकाओं से जुड़े लोग, न्यूज़ पोर्टल संचालक, यूट्यूबर और यहां तक कि विज्ञापन-मार्केटिंग विभाग के कर्मचारी भी शामिल किए गए हैं। इस पर पुराने और वरिष्ठ पत्रकारों ने गंभीर आपत्ति जताई है और इसे प्रेस क्लब की मूल भावना के खिलाफ बताया है।

दूसरा पक्ष करेगा अपील

मामले में दूसरा पक्ष पंजीयन विभाग में एक बार फिर अपील करने की तैयारी कर रहा है। उनका कहना है कि मौजूदा कार्यकारिणी का यह कदम सीधे-सीधे पंजीयन के आदेश का उल्लंघन है। वहीं कार्यकारिणी का तर्क है कि चुनाव अब नई सदस्यता सूची से ही कराए जाएंगे।

सवालों के घेरे में प्रेस क्लब

इस पूरे घटनाक्रम ने न केवल प्रेस क्लब के चुनाव को विवादों में डाल दिया है, बल्कि संगठन की साख और पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि क्लब को पत्रकारिता की गरिमा बचाने का मंच होना चाहिए, न कि वोट बैंक की राजनीति का।



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