Hindi medium closed in Atmanand school आत्मानंद स्कूल में हिंदी माध्यम बंद करने पर ग्रामीणों का विरोध शिक्षा के अधिकार की अनदेखी पर फूटा गुस्सा
छत्तीसगढ़ के गौरेला-पेंड्रा-मरवाही क्षेत्र के ग्राम पंचायत सेमरा में संचालित आत्मानंद स्कूल को लेकर इन दिनों स्थानीय लोगों में आक्रोश का माहौल है। स्कूल में हिंदी माध्यम की पढ़ाई बंद किए जाने के विरोध में ग्रामीणों ने सड़क जाम कर प्रदर्शन किया। और स्कूल प्रबंधन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। अभिभावकों और ग्रामीणों का कहना है कि स्कूल में बच्चों के साथ अन्याय हो रहा है और उन्हें शिक्षा जैसे बुनियादी अधिकार से वंचित किया जा रहा है।
प्रदर्शन की प्रमुख वजह हिंदी माध्यम की पढ़ाई बंद
विरोध करने वालों के अनुसार, आत्मानंद स्कूल में बिना किसी पूर्व सूचना या सरकारी आदेश के अचानक हिंदी माध्यम की पढ़ाई बंद कर दी गई है। इससे हिंदी माध्यम से पढ़ाई करने वाले छात्रों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अभिभावकों का कहना है कि सभी बच्चे आसानी से अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते हैं और न ही शहर के अधिकांश अभिभावकों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति इतनी मजबूत है कि वे कोचिंग या ट्यूशन जैसी अतिरिक्त सरकारी सहायता ले सकें।
प्रिंसिपल पर लगे गंभीर आरोप
चुनौती के दौरान ग्रामीणों ने स्कूल प्रबंधन पर बिना किसी सरकारी आदेश के हिंदी माध्यम के स्कूल को बंद करने का आरोप लगाया। उनके अनुसार प्रिंसिपल की मानसिकता तानाशाही है। और वे स्थानीय बच्चों के साथ भेदभाव करते हैं। स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि स्कूल प्रबंधन बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने के लिए मजबूर कर रहा है, जिससे उनका मनोबल गिर रहा है और उनका आत्मविश्वास कम हो रहा है।
SDM को सौंपा गया ज्ञापन
इस मामले को लेकर ग्रामीणों ने एसडीएम ऋचा चंद्राकर को ज्ञापन सौंपा है, जिसमें उन्होंने हिंदी मीडियम को बहाल करने और मौजूदा अनिवार्यता को हटाने की मांग की है। नोटिस में यह भी कहा गया है कि सेमरा स्कूल को आत्मानंद स्कूल में बदला जाए। बदलाव के बाद से ही यह हिंदी और अंग्रेजी दोनों माध्यमों में संचालित हो रहा है। ग्रामीणों की मांग है कि इस परंपरा को कायम रखा जाए, ताकि सभी वर्गों के बच्चों को आगे बढ़ने का मौका मिल सके।
2020 से पहले स्कूल की स्थिति
स्थानीय लोगों ने बताया कि वर्ष 2020 तक यह विद्यालय हिंदी माध्यम में भी संचालित हो रहा था। जब आत्मानंद योजना के तहत इसे अंग्रेजी माध्यम में परिवर्तित किया गया था, तब यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि पुराने छात्रों को किसी प्रकार की परेशानी नहीं होगी। लेकिन अब अचानक से प्रशासन द्वारा हिंदी माध्यम को बंद कर देना छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ ही नहीं बल्कि शिक्षा के अधिकार के भी खिलाफ है।
ग्रामीणों की मांगें
हिंदी माध्यम की पढ़ाई तुरंत शुरू की जाए।
स्कूल के वर्तमान प्रिंसिपल को हटाया जाए।
भविष्य में ग्रामीण छात्रों के हितों की अनदेखी न हो।
अध्ययनरत छात्रों को उनकी भाषा और क्षमता के अनुरूप माध्यम चुनने की स्वतंत्रता दी जाए।
छात्रों और पालकों की व्यथा
चर्चा के दौरान कई अभिभावकों ने बताया कि उनके बच्चे पहले हिंदी माध्यम में अच्छे अंक प्राप्त कर रहे थे, लेकिन अब माध्यम में अचानक परिवर्तन के कारण वे परेशान हैं। बच्चों का आत्मविश्वास कम हो गया है और उनमें सामान्यता की भावना पैदा हो रही है। एक अभिभावक ने कहा- हम किसान मजदूर हैं, हमारे बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाना हमारे बस की बात नहीं है। सरकार को हमारे बच्चों का भी ध्यान रखना चाहिए।
शिक्षा विभाग की भूमिका और प्रतिक्रिया
इस पूरे मामले में शिक्षा विभाग की प्रतिक्रिया अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन प्रदर्शन और नोटिस के बाद विभाग ने जांच की बात कही है। उम्मीद है कि उच्च अधिकारी इस मामले पर गंभीरता से विचार कर कोई समाधान निकालेंगे।
हिंदी माध्यम बनाम अंग्रेजी माध्यम बहस का मुद्दा
इस बात पर लंबे समय से बहस चल रही है कि बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाया जाना चाहिए या हिंदी माध्यम में। जहां एक ओर आत्मानंद स्कूल प्लॉट ने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए अंग्रेजी माध्यम को बढ़ावा दिया, वहीं दूसरी ओर प्रदेश में इसका विरोध भी हुआ। विरोध भी देखने को मिल रहा है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि बुनियादी शिक्षा मातृभाषा या स्थानीय बोली में होनी चाहिए ताकि बच्चे इसे आसानी से समझ सकें।