सरकारी स्कूलों की बदहाल हालत, गंदे शौचालय और मूलभूत सुविधाओं की कमी से जूझते बच्चे
बिलासपुर। जिले के सरकारी स्कूलों की हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। स्वच्छता और बुनियादी सुविधाओं की बात केवल कागजों तक सीमित रह गई है, जबकि हकीकत में विद्यार्थियों को गंदगी, बदबू और असुविधा के माहौल में पढ़ाई करनी पड़ रही है।
शहर के कई सरकारी स्कूलों में स्वच्छ पानी, साफ-सुथरे शौचालय और पंखे जैसी बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। बिलासपुर के शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला घुरू इसका ताजा उदाहरण है, जहां विद्यार्थियों के लिए बने टॉयलेट गंदगी और बदबू से भरे पड़े हैं। स्कूल की छात्राओं ने बताया कि शौचालय की स्थिति इतनी दयनीय है कि वहां जाने का मन नहीं करता। एक शौचालय तो शिक्षकों द्वारा ताला लगाकर रखा जाता है, जबकि कक्षाओं में लगे पंखे भी खराब पड़े हैं, जिससे बच्चों को भीषण गर्मी में पढ़ाई करनी पड़ रही है।
गंदे और बदबूदार शौचालय न केवल बच्चों को असुविधा दे रहे हैं, बल्कि उनके स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा पैदा कर रहे हैं। यह स्थिति साफ तौर पर स्वच्छता अभियान की विफलता और बच्चों के बुनियादी अधिकारों की अनदेखी को दर्शाती है।
जब इस संबंध में बिलासपुर जिला शिक्षा अधिकारी विजय टांडे से सवाल किया गया, तो उन्होंने जिम्मेदारी संबंधित विद्यालय के प्रधान पाठक या प्राचार्य पर डालते हुए कहा कि मरम्मत के लिए शासन से राशि उपलब्ध कराई जाती है।
अगर शहरी स्कूलों का यह हाल है, तो ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है, जहां कई स्कूलों में पीने का पानी तक उपलब्ध नहीं है। सवाल यह है कि मूलभूत सुविधाओं के लिए मिलने वाली सरकारी राशि का सही इस्तेमाल हो भी रहा है या नहीं।
स्थिति को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि सरकारी स्कूलों की दशा सुधारने के बजाय लगातार बिगड़ रही है, जिससे न केवल शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है बल्कि बच्चों का भविष्य भी खतरे में है।