शिक्षकों की घोर लापरवाही से 5 साल की बच्ची स्कूल के क्लासरूम में घंटो तक बंद रही देखें पूरी मामला
झारखंड के बरहे कस्बे के सरकारी मिडिल स्कूल में शुक्रवार को एक चौंकाने वाली घटना घटी, जिसने न केवल स्कूल प्रशासन की लापरवाही को उजागर किया, बल्कि सरकार की शिक्षा व्यवस्था पर भी सवाल खड़े कर दिए। यह घटना पाँच साल की मासूम बच्ची निशिता कुमारी के साथ हुई, जिसे स्कूल के बाद कक्षा में बंद कर दिया गया और वह दो घंटे तक वहीं रोती-बिलखती रही।
घटना शुक्रवार शाम को शुरू हुई जब स्कूल बंद होने का समय हो गया था। सभी बच्चे अपने-अपने घर लौट रहे थे, लेकिन पहली कक्षा की छात्रा निशिता कुमारी कक्षा में ही गायब थी। स्कूल के शिक्षक बिना यह जाने कि सभी बच्चे गायब हो गए हैं, कक्षा में घुस गए। उन्होंने कक्षा को बाहर से बंद कर दिया और अपने-अपने घर चले गए।
छोटी मासूम बच्ची दो घंटे तक उसी कमरे में बंद रही, जहाँ न रोशनी थी और न ही मदद का भरोसा। वह लगातार रोती रही, डर और घबराहट के मारे उसकी हालत बिगड़ती गई।
बच्ची के परिवार की चिंता
निशिता के पिता मुनेश गोप के अनुसार, उनकी बेटी निशिता अपनी जुड़वां बहन के साथ रोज़ाना स्कूल जाती है। उस दिन स्कूल की छुट्टी शाम तीन बजे हुई। जुड़वां बहन तो घर लौट आई, लेकिन निशिता नहीं लौटी।
परिवार ने सोचा कि वह किसी दोस्त के साथ रह गई होगी, लेकिन जब एक घंटे से ज़्यादा समय बीत गया और लड़की का कोई पता नहीं चला, तो पूरा परिवार चिंतित हो गया। गाँव वालों की मदद से उसकी तलाश शुरू की गई।
सिसकियों की आवाज बनी बच्ची के बचने का कारण
लगभग दो घंटे बाद, जब निशिता के चाचा स्कूल के पास बकरी लेने गए, तो उन्होंने स्कूल की इमारत से किसी के रोने की आवाज़ सुनी। पहले तो उन्हें शक हुआ, लेकिन जब उन्होंने ध्यान से सुना, तो पता चला कि यह किसी बच्चे की आवाज़ थी।
उन्होंने कई बार आवाज़ लगाई, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। जब उन्हें शक हुआ, तो उन्होंने खिड़की से झाँका तो देखा कि निशिता कमरे के अंदर बेसुध पड़ी है। उन्होंने जल्दी से खिड़की खोली और किसी तरह उस बच्ची को बाहर निकाला।
बच्ची की स्थिति और मानसिक प्रभाव
लड़की दो घंटे तक कमरे में बंद रहने के कारण डरी हुई थी। उसकी आँखों में डर और शरीर में कमजोरी थी। इतनी कम उम्र में इतनी बड़ी घटना ने उसे मानसिक रूप से झकझोर दिया।
घटना के बाद, परिवार ने उसे शुरुआती मदद दी और फिर जाँच के लिए नज़दीकी स्वास्थ्य केंद्र ले गए। डॉक्टरों ने बताया कि लड़की की हालत सामान्य थी, लेकिन इस घटना का मानसिक असर लंबे समय तक रह सकता है।
स्कूल प्रशासन का गैर-जिमेदारी
जब स्कूल प्रशासन को इस घटना के बारे में सूचित किया गया, तो वहाँ से एक चौंकाने वाला स्पष्टीकरण सामने आया। कार्यवाहक मुख्याध्यापक गन्ना उरांव ने कहा कि घटना के बाद, बच्चों ने खुद ही कक्षा बंद कर ली थी, जिसके कारण यह दुर्घटना हुई।
सवाल यह उठता है कि क्या पाँच साल के बच्चे को कक्षा में बंद करके बिना जाँच किए स्कूल बंद करके ले जाना शिक्षकों की लापरवाही नहीं है?
अगर बच्चे उस समय स्कूल से भाग गए थे, तो शिक्षक क्या कर रहे थे? क्या शिक्षकों ने यह सुनिश्चित नहीं किया कि सभी बच्चे सुरक्षित रूप से स्कूल से बाहर निकल गए हैं?
स्थानीय लोगों में आक्रोश
इस घटना के बाद कस्बे में आक्रोश की लहर दौड़ गई। ग्रामीणों का कहना है कि यह स्कूल पहले भी लापरवाही के लिए बदनाम रहा है। कई बार शिक्षक समय पर नहीं आते और बच्चों को बिना निगरानी के ही स्कूल से निकाल दिया जाता है।
ग्रामीणों ने मांग की है कि इस मामले की उच्च स्तरीय जाँच की जाए और दोषी शिक्षकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए ताकि भविष्य में ऐसी घटना न हो।
शिक्षा व्यवस्था पर उठते सवाल
यह घटना सिर्फ़ एक बच्ची की कहानी नहीं, बल्कि हमारी सरकारी शिक्षा व्यवस्था की ढिलाई और लापरवाही का प्रतीक है। जब शिक्षकों की ज़िम्मेदारी इतनी कमज़ोर हो कि वे बच्चों का सही ढंग से नंबरिंग भी नहीं करते, तो क्या ऐसी शिक्षा में बच्चों का भविष्य सुरक्षित है।