NH-43 पर तेज रफ्तार से दौड़ता बालू भरा हाइवा, ऊपर बैठे स्कूली बच्चे सुरक्षा व्यवस्था की खुली पोल
छत्तीसगढ़ के सूरजपुर ज़िले में राष्ट्रीय राजमार्ग-43 (NH-43) पर एक भयावह दृश्य सामने आया है, जो न सिर्फ़ मानव जीवन के प्रति उपेक्षा को दर्शाता है, बल्कि व्यवस्था में व्याप्त नियामक लापरवाही और खामियों को भी उजागर करता है। जयनगर थाना क्षेत्र के पार्वतीपुर गांव के पास मंगलवार को एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें रेत से लदा एक हाइवा वाहन (CG15/EB/0698) तेज़ रफ़्तार से दौड़ता हुआ दिखाई दे रहा है और उस पर चार स्कूली बच्चे बैठे दिखाई दे रहे हैं।
यह दृश्य देखकर कोई भी चिढ़ सकता है। एक तरफ रेत का विशाल ढेर, दूसरी तरफ तेज़ रफ़्तार से दौड़ती गाड़ी और उस पर बिना किसी सुरक्षा के बैठे मासूम बच्चे - यह किसी आपदा से कम नहीं था। सवाल यह उठता है कि क्या हमारा तंत्र इतना लापरवाह हो गया है कि बच्चों की सुरक्षा अब सिर्फ़ नियति के भरोसे छोड़ दी गई है?
वीडियो में साफ दिखी लापरवाही का नतीजा
वीडियो में साफ साफ देखा जा सकता है कि चार स्कूली बच्चे पूरी वर्दी पहने हुए रेत के ढेर पर या हाइवा के किनारे पर अपनी बैग पकड़े बैठे थे। गाड़ी की गति बहुत तेज़ थी और बच्चों के गिरने का लगातार खतरा बना हुआ था। ना कोई गार्ड रेल, ना सीटबेल्ट, और ना ही कोई संरक्षित स्थान – सब कुछ खुला और बेहद खतरनाक।
NH-43 पर तेज रफ्तार से दौड़ता बालू भरा हाइवा, ऊपर बैठे स्कूली बच्चे सुरक्षा व्यवस्था की खुली पोल
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यह नजारा नेशनल हाईवे जैसी व्यस्त सड़क पर देखने को मिला, जब रोज़ाना सैकड़ों छोटे-बड़े वाहन तेज़ रफ़्तार से गुज़रते हैं। बच्चों की यह हालत देखकर हर कोई सोचने पर मजबूर हो जाता है कि क्या व्यवस्था पूरी तरह से नाकाम हो गई है?
कौन है इसका जिम्मेदार
इस मामले में कई पक्षों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, लेकिन सबसे पहले जिम्मेदारी परिवहन एवं परिवहन विभाग की आती है, जिसका मुख्य कार्य ऐसे अवैध और खतरनाक परिवहन को रोकना है।
परिवहन विभाग की अनदेखी
हाइवा वाहन, जिसका उपयोग केवल निर्माण सामग्री जैसे बालू, गिट्टी, मुरुम ले जाने के लिए किया जाता है, उसमें बच्चों को बैठाकर ले जाना पूरी तरह गैर-कानूनी है। परिवहन विभाग को ऐसे मामलों पर तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।
स्कूल प्रशासन की लापरवाही
स्कूली बच्चों को अगर ऐसी असुरक्षित सवारी करनी पड़ रही है, तो यह साफ दर्शाता है कि स्कूल प्रशासन द्वारा परिवहन सुविधा की समुचित व्यवस्था नहीं की गई है। क्या बच्चों को सुरक्षित घर से स्कूल और स्कूल से घर तक लाने की कोई जिम्मेदारी स्कूल की नहीं बनती?
यातायात पुलिस और हाईवे पेट्रोलिंग की
NH-43 पर 24×7 गश्त के लिए हाईवे पेट्रोलिंग टीम तैनात होती है, लेकिन ऐसे में जब वीडियो में इतनी स्पष्ट रूप से वाहन और बच्चे दिख रहे हैं, तो सवाल उठता है कि उस वक्त पेट्रोलिंग टीम कहां थी
स्कूली बच्चों की जिंदगी के साथ खिलवाड़
इस मामले को सिर्फ़ शिक्षा नियमों के उल्लंघन के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए, यह बच्चों की ज़िंदगी से खिलवाड़ है। ऐसे दृश्य देखकर लगता है कि बच्चों की सुरक्षा अब हमारे समाज की ज़रूरत नहीं रही।
क्या कोई बच्चा रेत से लदे ट्रक पर सुरक्षित बैठ सकता है? क्या तेज़ रफ़्तार गाड़ी पर बैठा कोई मासूम बच्चा गिरकर चोटिल नहीं हो सकता? क्या स्कूल की पोशाक पहने बच्चे इस बात का सबूत नहीं हैं कि यह ज़िम्मेदारी स्कूल या संस्थान की भी है?
इस बात पर क्या कहता है कानून
भारत में, इंजन वाहन अधिनियम के तहत, रेत जैसे विकास सामग्री ले जाने वाले वाहनों में लोगों को ले जाने की अनुमति नहीं है। वाहनों में बच्चों को ले जाना वास्तव में अधिक वास्तविक अपराध है। ऐसे मामलों में वाहन चालक, मालिक, और संबंधित स्कूल के खिलाफ प्रशासन सख्त कानूनी कार्रवाई कर सकता है।
अब सबसे अहम सवाल यह है कि क्या सूरजपुर प्रशासन, यातायात विभाग और स्थानीय शिक्षा अधिकारी इस गंभीर समस्या का संज्ञान लेंगे या यह मामला भी कागजी कार्रवाई तक ही सीमित रहेगा।
अगर इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई, तो यह एक बेहद खतरनाक स्थिति बन जाएगी। दूसरे स्कूली बच्चे और वाहन चालक भी ऐसे खतरनाक रास्ते अपनाने लगेंगे। समय की मांग है कि प्रशासन सख्त कदम उठाए ताकि भविष्य में ऐसी लापरवाही दोबारा न दोहराई जाए।