फर्जी वन अधिकार पत्र घोटाला वन भूमि बेचने वाले दलाल गिरफ्तार, मास्टरमाइंड की तलाश जारी
छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले के वाड्रफनगर क्षेत्र में वन भूमि के नाम पर बड़ी लूट का मामला सामने आया है, जिसने न केवल सरकारी तंत्र की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि ग्रामीणों के विश्वास को भी हिलाकर रख दिया है। मानिकपुर सर्किल में सामने आए इस मामले में कुछ शातिर दलालों ने फर्जी वुडलैंड राइट्स सर्टिफिकेट (पट्टा) बनाकर ग्रामीणों से धोखाधड़ी की। इस वास्तविक मामले में, टिम्बरलैंड डिवीजन की शिकायत पर चार व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है, जिनमें से तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है, जबकि एक मुख्य ग्राहक अब भी नाबालिग है।
वाड्रफनगर के अंतर्गत मानिकपुर सर्किल के ग्रामीणों को कुछ स्थानीय लोगों द्वारा झांसा दिया जा रहा था कि वे वन भूमि पर अधिकार के लिए उचित 20,000 रुपये का किराया प्राप्त कर सकते हैं। पहले तो लोगों को लगा कि यह योजना सही है, लेकिन कुछ जागरूक ग्रामीणों ने पूरे मामले पर सवाल उठाए और वन विभाग को सूचित किया। सूचना मिलते ही वन विभाग हरकत में आया और तुरंत एक जाँच दल का गठन कर मामले की तह तक जाने का प्रयास किया।
टिम्बरलैंड विभाग द्वारा की गई जाँच में पता चला कि चार स्थानीय लोगों ने योजनाबद्ध तरीके से फर्जी दस्तावेज तैयार किए थे। उन्होंने फर्जी मुहरों और स्टाम्पों का इस्तेमाल करके लगभग 29 एकड़ वन भूमि के मालिकाना हक के दस्तावेज बनवाए। इतना ही नहीं, उन्होंने इन फर्जी पट्टों को अलग-अलग गाँव वालों को बेच दिया, जिससे उन्हें लाखों रुपये की अवैध कमाई हुई।
इन तथ्यों की पुष्टि होते ही पुलिस ने चलगली थाने में एक एफआईआर दर्ज कराई, जिसके आधार पर पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए त्वरित कार्रवाई करते हुए तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के दौरान पुलिस ने आरोपियों के पास से तीन मोबाइल फोन, एक मोटरसाइकिल और 29 एकड़ नकली माल से संबंधित दस्तावेज जब्त किए। हालाँकि, इस पूरे मामले का सूत्रधार अभी भी फरार है और पुलिस उसकी तलाश में जगह-जगह छापेमारी कर रही है।
वन अधिकार पत्र भारत सरकार का एक अनिवार्य अधिनियम है, जिसका उद्देश्य वन क्षेत्र में निवास करने वाले आदिवासी और पारंपरिक वनवासी समुदायों को उनके पारंपरिक भूभाग पर अधिकार प्रदान करना है। लेकिन जब इस तरह की धोखाधड़ी होती है, तो न केवल सरकारी योजनाओं की वैधता प्रभावित होती है, बल्कि वंचित समुदायों के अधिकार भी छिन जाते हैं।
इस मामले में, आरोपियों ने न केवल कानून का उल्लंघन किया, बल्कि झूठे वादों और दस्तावेजों के सहारे बेसहारा और निर्दोष ग्रामीणों को आर्थिक शोषण का शिकार भी बनाया। इससे यह स्पष्ट होता है कि भ्रष्टाचार अब जमीनी स्तर पर भी गहरी जड़ें जमा चुका है।
इस मामले में वन विभाग और पुलिस की तत्परता सराहनीय रही। सूचना मिलते ही दोनों एजेंसियों ने मिलकर जांच अभियान को आगे बढ़ाया और सबूत इकट्ठा किए। खास बात यह रही कि स्थानीय पुलिस ने मामले को गंभीरता से लिया और कुछ ही दिनों में तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया।
लेकिन, इस पूरे मामले में जो बात उभर कर आती है, वह यह है कि इतनी आसानी से धोखाधड़ी कैसे हो जाती है? क्या स्थानीय कंपनी को इसकी भनक तक नहीं लगी? अगर नहीं, तो नियामक निगरानी की ज़रूरत लगती है।
पुलिस द्वारा पकड़े गए तीनों आरोपियों से जिरह के दौरान पता चला कि पूरी फिरौती की व्यवस्था एक व्यक्ति ने की थी, जो इस समय अचानक फरार है। पुलिस सूत्रों के अनुसार, यह व्यक्ति काफी शातिर है और पहले भी ऐसे मामलों में शामिल रहा है, हालाँकि उसके खिलाफ पुख्ता गवाही पहले नहीं थी।
अब पुलिस ने इस आतंकी की तलाश तेज़ कर दी है। संभावित ठिकानों पर छापेमारी की जा रही है और उसके संपर्क में आए लोगों से भी पूछताछ की जा रही है। उम्मीद है कि जल्द ही वह भी पुलिस की गिरफ्त में होगा।