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स्वास्थ्य केंद्र भटगांव की सिस्टम भगवान भरोसे महिला ने फर्श पर दिया बच्चे को जन्म, जिम्मेदार बेखबर

स्वास्थ्य केंद्र भटगांव की सिस्टम भगवान भरोसे महिला ने फर्श पर दिया बच्चे को जन्म, जिम्मेदार बेखबर

 स्वास्थ्य केंद्र भटगांव की सिस्टम भगवान भरोसे महिला ने फर्श पर दिया बच्चे को जन्म, जिम्मेदार बेखबर




भैयाथान विकासखंड के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भटगांव में 9 अगस्त 2025 को स्वास्थ्य विभाग की घोर लापरवाही का ऐसा मामला सामने आया, जिसने क्षेत्र के लोगों को झकझोर कर रख दिया। प्रसव पीड़ा से कराहती एक महिला अस्पताल पहुंची, लेकिन वहां न डॉक्टर थे, न नर्स, न ही कोई अन्य स्वास्थ्यकर्मी। चार घंटे तक इंतजार के बाद महिला को मजबूरी में अस्पताल के फर्श पर ही बच्चे को जन्म देना पड़ा।


गंभीर बात यह रही कि इस पूरी प्रक्रिया में महिला को किसी भी तरह की चिकित्सकीय सहायता नहीं मिली। परिजनों ने ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर और स्टाफ से संपर्क करने के लिए बार-बार फोन मिलाया, लेकिन या तो कॉल रिसीव नहीं हुई या मोबाइल फोन बंद मिला। इस दौरान भटगांव निवासी जितेंद्र जायसवाल भी अपने परिचित को रेबीज का इंजेक्शन लगवाने पहुंचे, पर उन्हें भी कोई जिम्मेदार कर्मचारी नहीं मिला।


डिलीवरी के बाद खून से लथपथ फर्श को महिला ने खुद साफ किया और नवजात को बेड पर लिटाकर स्वयं जमीन पर बैठी रही। यह दृश्य अस्पताल व्यवस्था की बदहाली और मानवता की शर्मनाक स्थिति का प्रतीक बन गया।


करीब चार घंटे बाद इमरजेंसी ड्यूटी की डॉक्टर साक्षी सोनी अस्पताल पहुंचीं और सफाई में कहा कि उन्हें घटना की सूचना नहीं दी गई थी। वहीं, ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर शीला सोरेन पूरी तरह गायब रहीं और उनका मोबाइल फोन बंद मिला। अस्पताल प्रभारी डॉ. रतन प्रसाद मिंज ने भी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए इसे "ऊपरी अधिकारियों का काम" बता दिया।


स्थानीय लोगों का कहना है कि यह पहली बार नहीं है, पहले भी कई बार मरीजों को बिना इलाज के लौटना पड़ा है। शिकायत करने वालों को अक्सर परेशान किया जाता है, जबकि दोषियों पर कार्रवाई नहीं होती।


विकासखंड चिकित्सा अधिकारी राकेश सिंह ने मामले की जांच का आश्वासन दिया है, लेकिन क्षेत्रवासियों को आशंका है कि यह जांच केवल औपचारिकता बनकर रह जाएगी और न तो किसी जिम्मेदार पर ठोस कार्रवाई होगी, न ही पीड़ित परिवार को न्याय मिलेगा।


यह घटना न केवल स्वास्थ्य व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सेवाओं की जमीनी सच्चाई को भी उजागर करती है। जब तक जिम्मेदार अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई और अस्पताल व्यवस्था में सुधार नहीं होगा, तब तक ऐसे मामले दोहराते रहेंगे और पीड़ितों का दर्द सिर्फ खबरों की सुर्खियों में सिमटकर रह जाएगा।

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